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मेहबूब का घर हो या फरिश्तों की हो ज़मीन, जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़कर नहीं देखा
जो कहता था हज़रो तुझ जैसे हैं ज़माने में, उसने भी दोबारा हम सा कोई हमसफ़र नहीं देखा
Source:- pixabay.com ये रोना रुलाना तो यार अपना काम नहीं देवदास नहीं है किसी पारो के, इसलिए हाथों में कोई जाम नहीं
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